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versute Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)


versute ka kya matlab hota hai


वर्शुते

Noun:

छंद, पद्य, कविता,



versute शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:



भारत की प्राचीनतम कविताएं संस्कृत भाषा में ऋग्वेद में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं।

१६-अवधूतोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक) (कृष्णयजुर्वेदीय)।

श्रव्यकाव्य में पद्य, गद्य और चम्पू काव्यों का समावेश किया जाता है।

पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं।

इस साहित्य से ये भी सिद्ध होता है कि कन्नड़ साहित्य में चट्टान, बेद्दंड एवं मेलवदु छंदों का प्रयोग आरंभिक शताब्दियों से होता आया है।

यहाँ की छोटी-छोटी और असाधारण रूप से सँकरी गलियाँ तथा उनमें स्वच्छंद विचरनेवाले साँड़ अपरिचितों के लिए कुतूहल की वस्तु हैं।

अरविन्द घोष ने 'आनन्दमठ' में वर्णित गीत 'वन्दे मातरम्' का अंग्रेजी गद्य और पद्य में अनुवाद किया।

तालों में बोलों के छंद के हिसाब से उनके विभाग किए जाते हैं।

इसमें केवल एक ही पद या छंद स्वतंत्र रूप से किसी भाव या रस अथवा कथा को प्रकट करने में समर्थ होता है।

पुन: पद्यकाव्य के दो उपभेद किये जाते हैं—महाकाव्य और खण्डकाव्य।

यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था।

गद्य में काव्य रचना करने के लिए कवि को छंद शास्त्र के नियमों से स्वच्छंदता प्राप्त होती है।

दोहा, सोरठा, बरवै, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं।

इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था।

उन्होंने सोरठा एवं छंदों का प्रयोग करते हुए अपनी काव्य रचनाओं को किया है| उन्होंने ब्रजभाषा में अपनी काव्य रचनाएं की है| उनके ब्रज का रूप अत्यंत व्यवहारिक, स्पष्ट एवं सरल है| उन्होंने तदभव शब्दों का अधिक प्रयोग किया है।

२९-इतिहासोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक)।

ब्रह्मा का उल्लेख पहले कुत्सायना स्तोत्र कहलाए जाने वाले छंद ५.१ में है।

जहाँ गद्य लिख गए हैं वे भी पद्यमय गद्य-रचनाओं में ऐसी शब्द-शक्ति, ध्वन्यात्मकता, लव एवं अर्थगर्भिता है कि वे किसी दैवी शक्ति की रचनाओं का आभास देते हैं।

कला काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है।

३१-ऊध्वर्पण्ड्रोपनिषद् (वाक्यात्मक एवं पद्यात्मक)।

लिखित इतिहास का आरंभ पद्य अथवा गद्य में वीरगाथा के रूप में हुआ।

इनका पद्य वैदिक मंत्रों के अनुरूप सरल, प्राचीन तथा सुबोध है।

श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य

मात्राओं की संख्या के आधार पर छन्दों का वर्गीकरण : यह भारतीय लिपियों की अद्भुत विशेषता है कि किसी पद्य के लिखित रूप से मात्राओं और उनके क्रम को गिनकर बताया जा सकता है कि कौन सा छन्द है।

आठ या आठ से अधिक सर्ग होने चाहिए, प्रत्येक सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन होना चाहिए तथा सर्ग के अंत में अगले अंक की सूचना होनी चाहिए।

अत: पद्यकाव्य में ताल, लय और छन्द की व्यवस्था होती है।

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