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prakriti Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)


prakriti ka kya matlab hota hai


प्रकृति

Noun:

प्राकृत भाषा, प्राकृत,



prakriti शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:



प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना।

तद्भव शब्द- ये वे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें बहुत ऐतिहासिक बदलाव आया है।

यह जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूलमंत्र है जो प्राकृत भाषा में है-।

रासो की भांति कीर्तिलता में भी गाथा छन्द का व्यवहार प्राकृत भाषा में हुआा है।

प्राकृत के वररुचि आदि वैयाकरणों ने प्राकृत भाषाओं की प्रकृति संस्कृत को मानकर उससे प्राकृत शब्द की व्युत्पत्ति की है।

प्राकृत भाषा एवं उसकी विशेषतायें ।

फारसी में कोई व्याकरणिक लिंग नहीं है और न ही सर्वनाम प्राकृतिक लिंग के लिए चिह्नित हैं।

दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी ३ करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं।

इसे पूर्व मागधी नामक प्राकृत भाषा का वंशधर माना जाता जिसे कि १५०० साल पहले पूर्व भारत में प्रयोग किया जाता था।

पालि, प्राकृत, मारवाड़ी/मेवाड़ी, अपभ्रंश, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, सिंधी, कश्मीरी, मैथिली, भोजपुरी, नेपाली, मराठी, डोगरी, कुरमाली, नागपुरी, कोंकणी, गुजराती, बंगाली, ओड़िआ, असमिया।

संक्षेप में, वेदों में इस संसार में दृश्यमान एवं प्रकट प्राकृतिक शक्तियों के स्वरूप को समझने, उन्हें अपनी कल्पनानुसार विभिन्न देवताओं का जामा पहनाकर उनकी आराधना करने, उन्हें तुष्ट करने तथा उनसे सांसारिक सफलता व संपन्नता एवं सुरक्षा पाने के प्रयत्न किए गए थे।

इनमें विश्व की परमसत्ता के स्वरूप, उसके अवस्थान, विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों के साथ उसके संबंध, मानवीय आत्मा में उसकी एक किरण की झलक या सूक्ष्म प्रतिबिंब की उपस्थिति आदि को विभिन्न रूपकों और प्रतीकों के रूप में वर्णित किया गया है।

इसी के फलस्वरूप प्राकृत भाषा की प्रवृत्तियों का विकास हुआ।

उपनिषदों में उन अनेक प्रयत्नों का विवरण है जो इन प्राकृतिक शक्तियों के पीछे की परमशक्ति या सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता से साक्षात्कार करने की मनोकामना के साथ किए गए।

काल के आधार पर प्राकृत भाषाओं के भेद ।

उन लोगों के मन सांसारिक आनंद से भरे थे, संपन्नता से संतुष्ट थे, प्राकृतिक दिव्यताओं से भाव-विभोर हो उठते थे।

प्राकृत भाषा का स्वरूप एवं क्रमिक विकास ।

यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने।

इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

इस स्थान पर सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में प्राकृत भाषा में बुद्ध का जन्म स्थान होने का वर्णन किया हुआ शिलापत्र अवस्थित है।

सौभाग्य से इनमें केवल ई. पूर्व तृतीय शती की प्राकृत भाषा का स्वरूप सुरक्षित है, किंतु उन प्रशस्तियों में तत्कालीन भाषा के प्रादेशिक भेद भी हमें प्राप्त होते हैं।

जब प्रकृति करवट लेती थी तो प्राकृतिक विपदाओं का सामना होता था।

यदि आगे पीछे आनेवाली आर्य जातियों के भाषाभेद से प्राकृत भाषाओं के उद्गम और विकास व संबंध हो तो आश्चर्य नहीं।

इसके पश्चात् प्राकृत भाषाओं के जो भेद प्रभेद हुए उनका विशद वर्णन भरत नाट्यशास्त्र (अध्याय 17) में प्राप्त होता है।

इसके पीछे कोई ज्योतिष शास्त्रीय या प्राकृतिक योजना नहीं है।

इन लक्षणों के सद्भाव का समाधान समुचित रूप से यही मानकर किया जा सकता है कि प्राकृत भाषाओं में उनका आगमन प्राचीनतम आर्य जातियों की बोलियों से अविच्छिन्न परंपरा द्वारा चला आया है।

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