bromise Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
bromise ka kya matlab hota hai
प्रतिज्ञा
Noun:
स्वीकार, संकेत, आशा, प्रतिज्ञा, वचन, वादा,
Verb:
होनहार होना, भरोसा देना, आशा देना, वादा करना, प्रतिज्ञा करना,
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bromise शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था।
यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नंबर देने के लिए सैंकडों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियां थीं।
अनन्त शयनम् अयंगार तो दक्षिण भारतीय भाषाओं के लिए भी देवनागरी की संभावना स्वीकार करते थे।
उसमें शब्दों के सही उच्चारण का संकेत-चिह्नों से विशुद्ध और परिनिष्ठित बोध भी कराया है।
किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है।
ये संकेत लिपि प्रणालियां परस्पर विरोधी भी हैं।
१९४५ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी और श्रीनिवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्णय लिया गया।
इनमें उत्तम कोटि के कोशकारों ने ग्रन्थसन्दर्भों के संस्करणात्मक संकेत भी दिए हैं।
हमारे लिए यदि कोई सर्व-मान्य लिपि स्वीकार करना संभव है तो वह देवनागरी है।
अन्यथा इसके कुछ विशेष संकेत होने चाहिए कि अब राष्ट्र गान को बजाना आरम्भ होने वाला है।
* क) उच्चाणमसूचक संकेतचिह्नों के माध्यम से शब्दों के स्वरों व्यंजनों का पूर्णतः शुद्ध और परिनिष्ठित उच्चारण स्वरूप बताना और स्वराघात बलगात का निर्देश करते हुए यतासम्भव उच्चार्य अंश के अक्षरों की बद्धता और अबद्धता का परिचय देना;।
पाश्चात्य विद्वान फ्लीट, जौली आदि ने इस पुस्तक को एक ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण’ ग्रंथ बतलाया और इसे भारत के प्राचीन इतिहास के निर्माण में परम सहायक साधन स्वीकार किया।
(६) एक सर्वमान्य लिपि स्वीकार करने से भारत की विभिन्न भाषाओं में जो ज्ञान का भंडार भरा है उसे प्राप्त करने का एक साधारण व्यक्ति को सहज ही अवसर प्राप्त होगा।
इसीलिए, दो संकेत लिपियां दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नंबर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं।
सबने स्वीकारा है देवनागरी की वैज्ञानिकता को (प्रभासाक्षी)।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।
(घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को "देवनागर" कहते थे।
अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी अक्षरों, विरामचिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
अपने पूर्व अर्थशास्त्रों की रचना की बात स्वयं कौटिल्य ने भी स्वीकार किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस लेने को कहा।
इनमें से अनेक सुझावों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका या उन्हें अस्वीकार कर दिया गया।
भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोड़कर)।
योरप में आधुनिक कोशों का जो स्वरूप विकसित हुआ, उसकी रूपरेखा का संकेत ऊपर किया जा चुका है।
सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ स्वीकार किए गये हैं जिनमें धर्म प्रमुख है।
जिस प्रकार भारतीय अंकों को उनकी वैज्ञानिकता के कारण विश्व ने सहर्ष स्वीकार कर लिया वैसे ही देवनागरी भी अपनी वैज्ञानिकता के कारण ही एक दिन विश्वनागरी बनेगी।
यहाँ प्रसंगतः ज्ञानकोशों का संकेतात्मक नामनिर्देश मात्र कर दिया जा रहा है।