vestiment Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
vestiment ka kya matlab hota hai
वेस्टिमेंट
Noun:
पहनाव, वस्र,
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vestiment शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें मंडल में वस्र्ण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं।
आगे कोई काररवाई वे कर पाएँ, इसके पूर्व जाड़ा आ गया; समुचित खानेपीने, वस्रादि की व्यवस्था के अभाव में सैनिक दयनीय स्थिति में पड़ गए।
दुपट्टा एवं छींट के वस्र -- हम्मीरगढ़।
यहाँ मुख्यतः पत्थर - नक्काशी, मूर्ति शिल्प, चित्रकारी, वस्र- सिलाई, आभूषण- जड़ाई, डोली, स्वर्णकारी, औषधि व नाव आदि बनाने का काम होता था।
गर्भगृह में दिगंबर जैन साधु वस्रहीन अवस्था में दिखाए गए हैं।
वस्र- निर्माण, रंगाई, छपाई व कढ़ाई का काम मुस्लिम जाति के रंगरेजों, छिपाओं तथा हिंदूओं में पटवा लोगों द्वारा किया जाता था।
कपास का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जो ये दर्शाता है की भारतीयों का कपास से सूति वस्र बानाने का ज्ञान प्राचीन काल से ही है।
विवाह के अवसर पर सामान्यतः बड़े बुजुर्ग पारंपरिक पहनावे में आते हैं।
आशा जी की फैशन और पहनावे में सफेद साड़ी चमकदार किनारो वाली, गले में मोतियों के हार और हीरा प्रसिद्ध है।
यहाँ के जूते, ऊन के वस्र और किंरगाल से बनी हुई वस्तुओं की अच्छी मांग है।
उनके वस्र तार-तार थे और चेहरे पीले।
अलवर में धोती- कुर्ता तथा साफा (सिर पे पहनने का) पुरुषों का पहनावा है जो कि एक रौबदार पहनावा है।
अद्येति.........नामाहं.........नाम्नीम् इमां कन्यां/भगिनीं सुस्नातां यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि - अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति दैवत्यां, शतगुणीकृत, ज्योतिष्टोम-अतिरात्र-शतफल-प्राप्तिकामोऽहं ......... नाम्ने, विष्णुरूपिणे वराय, भरण-पोषण-आच्छादन-पालनादीनां, स्वकीय उत्तरदायित्व-भारम्, अखिलं अद्य तव पतनीत्वेन, तुभ्यं अहं सम्प्रददे।
युवक और युवतियाँ सभी आधुनिक भारतीय पहनावे पहनते हैं, लेकिन गाँव में रहनेवाले अधिकांश व्यस्क स्त्री-पुरुष धोती या साड़ी पहनना ही पसन्द करते हैं।
भिवानी का सामान्य पहनावा पुरुषों में कुर्ता-पजामा, धोती, पैंट-शर्ट, तथा सर पर खंडूवा है।
प्रत्येक जनजाति की अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराएं, पहनावा और अपनी भाषाएं हैं।
पंजाबी पहनावा भी पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है।
अधिकतर सूक्तों में वस्र्ण के प्रति उदात्त भक्ति की भावना दिखाई देती है।
समय के साथ भिवानी में भी हरियाणा के अन्यत्र स्थानों की भांति पाश्चात्य पहनावा प्रचलित होता जा रहा है।
मुस्लिम जाति के जुलाहे बारीक कपड़े की बुनाई का काम करते थे, लेकिन इन वस्रों का प्रचलन मात्र अभिजात व कुलीन वर्ग में ही होने के कारण मोटे रेजा उद्योग जैसा प्रचलित नहीं हो पाया।
यथाशक्ति अलंकृतां, गन्धादि - अचिर्तां, वस्रयुगच्छन्नां, प्रजापति।
प्रदेश के रहन-सहन और पहनावे पर राजस्थान का काफ़ी प्रभाव देखा जा सकता है।
राज्य के पुरुषों का परंपरागत पहनावा धोती है, जिसे यहां पाँचे कहते हैं।