unavailably Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
unavailably ka kya matlab hota hai
अनुपलब्ध
Adjective:
अलभ्य, अप्राप्य, नायाब, पहुंच के बाहर का, पहुंच से बाहर का,
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unavailingunavailingly
unavenged
unaverse
unavoidability
unavoidable
unavoidable casualty
unavoidably
unavowed
unawakened
unawakening
unawarded
unaware
unawareness
unawares
unavailably शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
(4) कुछ वैदिक शब्द लौकिक संस्कृत में अप्राप्य हैं और कुछ नये शब्दों का उद्भव भी हो गया है।
वैदिक संस्कृत में क्रियापदों की अवस्था को द्योतित करने वाले दो और लकार हैं : लट् लकार एवं निषेधात्मक लुङ्लकार (Injunctive) (जो लौकिक संस्कृत में केवल निषेधार्थक ‘मा’ से प्रदर्शित होता है और जो लौकिक संस्कृत में पूर्णतः अप्राप्य है।
मौर्य सम्राट् अशोक से लेकर अलभ्य प्राचीनतम लेखों तथा साहित्य में इन्हीं प्राकृतों और विशेषत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है।
आज अनूप पुस्तकालय (बीकानेर) अलभ्य पुस्तकों का भण्डार है, जिसका श्रेय अनूपसिंह के विद्यानुराग को है।
ब्रह्मगुप्त की कृति 'खण्डखाद्यक' की टीका लिखी जो अप्राप्य है।
यह संपूर्ण अप्राप्य है।
वर्तमान में दोनो अप्राप्य हैं।
परंतु इसके अलभ्य होने के कारण इसी कुल के कई अन्य द्रव्य, जो मैदानों में उगते हैं और जो गुण में शठी तुल्य हो सकते हैं, संभवत: इसके स्थान पर प्रतिनिधि रूप में ग्रहण कर लिए गए हैं।
दर्शन के लिए सत्य ज्ञान निरपेक्ष या समग्र का दोषरहित ज्ञान है; विज्ञान की दृष्टि में ऐसा ज्ञान मानव बुद्धि के लिए अप्राप्य है।
ईहामृग के नामकरण के संबंध में अभिनवगुप्त और रामचंद्र का मत है कि नायक अथवा प्रतिनायक इसमें मृग के समान अलभ्य सुंदरी की कामना करता है।
रोमन, अरबी एवं अन्य में यह गुण अप्राप्य है।
वहाँ लम्बे समय तक रहे और भारत की उस विरासत का उद्धार किया, जो हमारे लिए अज्ञात, अलभ्य और विस्मृत हो चुकी थी।
बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, सदानं मिश्र, रुद्रदत्त शर्मा, अंबिकादत्त व्यास और बालमुकुंद गुप्त जैसे सजीव लेखकों की कलम से निकले हुए न जाने कितने निबंध, टिप्पणी, लेख, पंच, हास परिहास औप स्केच आज में हमें अलभ्य हो रहे हैं।
जबकि लौकिक संस्कृत के छन्द वंशस्थ, उपेन्द्रवज्रा, शिखरिणी आदि वेदों में पूर्णतः अप्राप्य हैं।
इनमें से बहुत से रत्न अब अप्राप्य हैं तथा बहुत से नए-नए रत्नों का आविष्कार भी हुआ है।
नीहार की विषयवस्तु के सम्बंध में स्वयं महादेवी वर्मा का कथन उल्लेखनीय है- "नीहार के रचना काल में मेरी अनुभूतियों में वैसी ही कौतूहल मिश्रित वेदना उमड़ आती थी, जैसे बालक के मन में दूर दिखायी देने वाली अप्राप्य सुनहली उषा और स्पर्श से दूर सजल मेघ के प्रथम दर्शन से उत्पन्न हो जाती है।
अलभ्यापातालेऽप्यलसचलितांगुष्ठशिरसि।
उनमें से सामवेद का ज्यौतिषशास्त्र अप्राप्य है, शेष तीन वेदों के ज्यौतिष शास्त्र प्राप्त होते हैं।
जोज़ेफीन के गौरवमय जीवन का अंत मई २९, १८१४ ईo को पेरिस के निकट ला मालमेसन में हुआ, जिस स्थान को उसने अलभ्य फूलों और पौधों से सँवारा था।
पाताल विजय, जो आज अप्राप्य रचना है, जिसका उल्लेख नामिसाधु ने रुद्रटकृत काव्यालंकार की टीका में किया है।
आज अनूप पुस्तकालय (बीकानेर) अलभ्य पुस्तकों का भण्डार है, जिसका श्रेय अनूपसिंह के विद्यानुराग का है।
जाम्बवती विजय आज एक अप्राप्य रचना है जिसका उल्लेख राजशेखर नामक व्यक्ति ने जह्लण की सूक्ति मुक्तावली में किया है।