tymbal Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
tymbal ka kya matlab hota hai
टायम्बल
Noun:
करताल, मजीरा, झांझ,
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tymbal शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
हालांकि सामने और पीछे की ओर स्थित सममितीय पिक-अप सामान्य स्टीरियो रिकॉर्डिंग में एक समस्या हो सकती है, लेकिन रिबन माइक्रोफोन को क्षितिजात्मक रूप से, उदाहरण के लिये करताल के ऊपर, रखने पर उच्च-क्षेत्र अस्वीकृति का प्रयोग एक लाभ के लिये किया जा सकता है, ताकि पिछला लबादा केवल करताल के ऊपर से आने वाली ध्वनि को ही लेता है।
कुछ क्षेत्रों में इसे करताल भी कहते हैं।
नागेश्वर यादव और उनके साथियों ने पैर में घुंघुरू बांधे, फार, नगाड़ा, करताल के माध्यम से बिरहा गायकी व फरी नृत्य प्रस्तुत किया गया।
यहां यह भी स्पष्ट कर देना होगा कि फरी नृत्य में घुंघरू, फार, नक्कारा के अलावा करताल का भी प्रयोग किया जाता है।
सर पर पगड़ी, कमर में फेंटा, पावों में घुँघरू, हातों में करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोडा ठुमुक- ठुमुक नाचने लगता है तो गायक-नर्तक भी उसी के साथ झूम उठता है।
इस प्रकार तिरुकोलक्का में उन्हें स्वर्ण मजीरा प्राप्त हुआ, तिरुनेलवोइल में उन्हें मोती की पालकी तथा छत्र प्राप्त हुआ।
प्रसिद्ध सुखना झील और टिकरताल झील पंचकुला में हैं।
ये ललित भंगिमों में खड़ी बाँसुरी, शहनाई, ढोल, मृढंग, झाँझ और मजीरा बजा रही हैं।
सेव्य विग्रह के बांयी ओर झेला दल में एक या अधिक संत झांझ या मजीरा आदि बजाते हैं।
नृत्यकार एक हाथ में करताल बजाते हैं।
वैष्णवी खंजनी, करताल (जिसे आजकल खडताल भी कहते है) एवं खौल बजाकर भिक्षा मागंते हैं।
हालांकि करताल तत, काँसा अथवा पीतलनिर्मित झाँझ का एक छोटा संस्करण है।
प्राचीन झांझ (उदाहरणस्वरूप, क्लॉड डिबसी द्वारा प्रयुक्त) छोटे करताल जैसे उंगलियों में पहनकर बजाए जाने वाले झांझ है, जिनका एक निश्चित सुरमान वाला उच्च स्वर होता है; इनका इस्तेमाल मूल रूप से नृत्य वाद्य के रूप में प्राचीन काल से मध्य-पूर्व में हो रहा है।
तिश्र या मिश्र छंद तथा करताल और मृदंग के साथ यह अंश अनुष्ठित होता है, इसे इस नृत्यानुष्ठान कि भूमिका कहा जाता है।
दिन का आरम्भ सुबह 7 बजे पल्लियराई (या शयनकक्ष) से भगवान की चरणपादुका (पादुकाएं) को एक पालकी में रखकर पवित्र गर्भ गृह में लेन के द्वारा होता है, इस पालकी के पीछे मजीरा, अम्लान्न और मृदंग लिए हुए भक्तगण होते हैं।
वहां दोनों नवरात्रों में मध्य प्रदेश के सीधी - सरगुजा, बिहार के रोहतास - पलामू, उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर - सोनभद्र के हजारों आदिवासी मादल, ढोल, मजीरा बजाते हुए लंगोटी लगाकर, बाल मुंडवाकर, रोली लगाकर, बाना त्रिशूल लेकर यहाँ आकर मंदिर के चारों ओऱ नृत्य करते और त्रिशूल, नारियल, माला चढ़ाकर अथवा बकरे की बलि चढ़ाकर पूजा करते हैं।