sighful Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
sighful ka kya matlab hota hai
दर्शनीय दृष्टि संपन्न
Adjective:
बीभत्स, अधर्मी, दुष्ट, पापमय, पापी,
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sighful शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
अधर्मी हो जाने के कारण उनकी मति मारी गई थी।
धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया।
तथापि यह उत्पत्ति सिद्धांत आत्यंतिक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि परपक्ष का रौद्र या वीर रस स्वपक्ष के लिए भयानक की सृष्टि भी कर सकता है और बीभत्सदर्शन से शांत की उत्पत्ति भी संभव है।
शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी।
कर्ण एक ऐसे व्यक्तित्व का उदाहरण है जो गुणी, दानवीर, न्यायप्रिय और साहसी था लेकिन फिर भी उसका पतन हुआ क्योंकि वह अधर्मी दुर्योधन के प्रति निष्ठावान था।
आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, मैं अधर्मी नहीं हूँ फिर आपने मेरा वध क्यों किया?।
उनके पश्चात् धनंजय (10वीं शती) ने चित्त की विकास, विस्तार, विक्षोभ तथा विक्षेप नामक चार अवस्थाएँ मानकर शृंगार तथा हास्य को विकास, वीर तथा अद्भुत को विस्तार, बीभत्स तथा भयानक को विक्षोभ और रौद्र तथा करुण को विक्षेपावस्था से संबंधित माना है।
करुण, बीभत्स, रौद्र, वीर और भयानक से शृंगार का; भयानक और करुण से हास्य का; हास्य और शृंगार से करुण का; हास्य, शृंगार और भयानक से रौद्र का; शृंगार, वीर, रौद्र, हास्य और शात से भयानक का; भयानक और शांत से वीर का; वीर, शृंगार, रौद्र, हास्य और भयानक से शांत का विरोध माना जाता है।
यह आधुनिक भस्मासुर पशुओं की खाल में भूसा भरने वाला एक स्वार्थी, उद्धत तथा अधर्मी उद्दंड वासु नामक पात्र है, जो मंदिर के हाथी को शूट करने के लिए घात लगाकर बैठा रहता है, परंतु अनायास ही अपने माथे के पास मंडराती एक मक्खी को मारने के प्रयत्न में गोली चल जाने से खुद को ही मार डालता है।
यथा, शांत रस और दयावीर तथा वीभत्स में से दयावीर का शांत में अंतर्भाव तथा बीभत्स स्थायी जुगुप्सा को शांत का स्थायी माना गया है।
जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा।
रक्तबीज असुर अधर्मी आयो हैं दल जोड़ के,।
इसी प्रकार यदि शृंगार में चित्त की द्रवित स्थिति, हास्य तथा अद्भुत में उसका विस्तार, वीर तथा रौद्र में उसकी दीप्ति तथा बीभत्स और भयानक में उसका संकोच मान लें तो भी भरत का क्रम ठीक नहीं बैठता।
उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था।
म्लेच्छ और जो लोग अधर्मी या अनैतिक हैं उन्हें भी अवार्ण माना जाता है।
जब मनुष्य धार्मिक होता है तब उसका विश्वास और मान्य शत्रु भी करते हैं और जब अधर्मी होता है तब उसका विश्वास और मान्य मित्र भी नहीं करते।
भरतमुनि (2-3 शती ई.) ने काव्य के आवश्यक तत्व के रूप में रस की प्रतिष्ठा करते हुए शृंगार, हास्य, रौद्र, करुण, वीर, अद्भुत, बीभत्स तथा भयानक नाम से उसके आठ भेदों का स्पष्ट उल्लेख किया है तथा कतिपय पंक्तियों के आधार पर विद्वानों की कल्पना है कि उन्होंने शांत नामक नवें रस को भी स्वीकृति दी है।
जीवाणु अस्त्र में रोग फैलानेवाले जीवाणु होते हैं और जिस युद्ध में ये इस्तेमाल किए जाते हैं वह बहुत बीभत्स एवं संहारक होता है।
बीभत्स भरत तथा धनञ्जय के अनुसार शुद्ध, क्षोभन तथा उद्वेगी नाम से तीन प्रकार का होता है।
धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र दुर्योधन के सभी अधर्मों का राज्यसभा में साथ दिया इसलिए सब से बड़ा अधर्मी भी धृतराष्ट्र कहा गया है।
बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है।
शृंगार का स्थायी रति, हास्य का हास, रौद्र का क्रोध, करुण का शोक, वीर का उत्साह, अद्भुत का विस्मय, बीभत्स का जुगुप्सा, भयानक का भय तथा शांत का स्थायी शम या निर्वेद कहलाता है।
राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था।
सुखात्मक रसों में शृंगार, वीर, हास्य, अद्भुत तथा शांत की और दु:खात्मक में करुण, रौद्र, बीभत्स तथा भयानक की गणना की गई।
इसी प्रकार बीभत्सदर्शन से भयानक की उत्पत्ति भी संभव है।