sheading Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
sheading ka kya matlab hota hai
छप्पर
Noun:
सिरनामा, शीर्षक,
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sheading शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था।
अगस्त २००७ में, (१९७५) की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म शोले की रीमेक बनाई गई और उसे राम गोपाल वर्मा की आग शीर्षक से जारी किया गया।
अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जी को, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने सम्भवत: १८७६ में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बाँग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वन्दे मातरम्’।
पारंपरिक भू-स्वामित्व--देशी शीर्षक 1992 तक मानी नहीं गयी, जबतक उच्च न्यायालयने यूरोपियन अधिग्रहण के समय क्वींसलैंड के विरुद्ध मेबो के मामले में ऑस्ट्रेलिया के मत को टेर्रा न्युलिय्स (अक्षरश "स्वामित्त्व मुक्त भूमि"प्रभावता "खाली जमीन"या भूमि) कह कर उलट न दिया।
१९८८ में बच्चन फ़िल्मों में तीन साल की छोटी सी राजनीतिक अवधि के बाद वापस लौट आए और शहंशाह में शीर्षक भूमिका की जो बच्चन की वापसी के चलते बॉक्स आफिस पर सफल रही।
2015 में भोपाल में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन के एक सत्र का शीर्षक ‘विदेशी नीतियों में हिन्दी’ पर समर्पित था, जिसमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा में से एक के तौर पर पहचान दिलाने की सिफारिश की गई थी।
इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंछलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम्ब के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा।
चूँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में व अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था।
अंग्रेजी आदि भाषाओं में बुक ऑफ़ नालेज, डिक्शनरी आव जनरल नालेज आदि शीर्षकों के अन्तर्गत नाना प्रकार के छोटे बडे विश्वकोश अथवा ज्ञानकोश बने हैं और आज भी निरन्तर प्रकाशित एवं विकसित होते जा रहे हैं।
यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक "बन्दे मातरम्" होना चाहिये "वन्दे मातरम्" नहीं।
आगे दिया शीर्षक कंपनी बाग़ इसी का वर्णन है।
জজজप्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने "हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत" शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी बल्कि 'स्' को 'ह्' की तरह बोला जाता था।