sclaunder Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
sclaunder ka kya matlab hota hai
मानहानि
Noun:
अपयश, प्रवाद, झूठी निंदा, अपवाद, बदनामी,
Verb:
अपयश फैलाना, कलंक लगाना, झूठी निंदा करना,
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sclaunder शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
इस अवधि में जन्म लेने वाला बालक धन-हानि और अपयश देता है।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥।
फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह अपयशग्रस्त और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा।
जीवों के जन्म मरण का प्रवाद चलता रहता है किंतु समग्र संसार की न तो उत्पत्ति ही होती है, न विनाश।
इसके बावजूद बाबू श्यामसुंदर दास से लेकर बच्चन सिंह तक हिंदी आलोचना की तीन पीढ़ियाँ एक प्रवाद के रूप में मानती रही है कि प्रसाद के नाटक अभिनेय नहीं हैं।
क्षांति पारमिता : क्षांति का अर्थ है सहनशीलता. बोधिसत्व सहनशीलता को धारण करते हुए, इसका मूक भाव से अभ्यास करता है. वह लाभ-अलाभ, यश-अपयश, निंदा-प्रशंसा, सुख-दुख सबको समान समझकर आगे बढ़ता है.।
राजस्थान के प्रवाद (लेखक: डॉ॰ कन्हैयालाल सहल)।
जब प्रेम गली में पाँव धरा फिर अपयश से घबराना क्या।
अपयश- अपकीर्ति, अयश, अकीर्ति, अपवाद, निन्दा।
किन्नरों की उत्पति के बारे में दो प्रवाद हैं-एक तो यह कि वे ब्रह्मा की छाया अथवा उनके पैर के अँगूठे से उत्पन्न हुए और दूसरा यह कि अरिष्टा और कश्पय उनके आदिजनक थे।
यह भी प्रवाद है कि यह केवल वर्षा की बूँद का ही जलपीता है, प्यास से मर जाने पर भी नदी, तालाब आदि के जल में चोंच नहीं डुबोता।
नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।
नैयायिकों में जो प्रवाद प्रचलित हैं उनके अनुसार गौतम वेदव्यास के समकालीन ठहरते हैं; पर इसका कोई प्रमाण नहीं है।
प्रवाद है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।
इसकी इसी दुर्भाग्यपूर्ण इतिहास के कारण इसे प्रायः स्काॅटलैंड और एडिनबर्ग के अपयश या कलंक एवं स्काॅटलैंड की गौरव और गरीबी(प्राइड ऐंड पोवर्टी ऑफ़ स्काॅटलैंड) एवं ऐसे ही अन्य कई दुष-उपनामों से संबोधित किया जाता है।
किन्नरों की उत्पत्ति में दो प्रवाद हैं।
जिस प्रकार वात्स्यायन के नामकरण पर मतभेद है उसी प्रकार उनके स्थितिकाल में भी अनेक मतवाद और प्रवाद प्रचलित हैं और कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जीवनकाल ६०० ईसापूर्व तक पहुँचता है।
प्रवाद है कि वह चंद्रमा का एकांत प्रेमी है और रात भर उसी को एकटक देखा करता है।
प्रवाद है कि इसके फूल पर भ्रमर नहीं बैठते और शिव पर नहीं चढ़ाया जाता।
भारत के इतिहास में सूर्यवंश के इस अध्याय का वह अंश भी है जिसमें एक ओर यह संदेश है कि राजधर्म का निर्वाह करनेवाले राजा की कीर्ति और यश देश भर में फैलती है, तो दूसरी ओर चरित्रहीन राजा के कारण अपयश व वंश-पतन निश्चित है, भले ही वह किसी भी उच्च वंश का वंशज ही क्यों न रहा हो!।