resining Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
resining ka kya matlab hota hai
तर्क
Noun:
विनय, संशोधन,
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resistance
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resining शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
केरल के गांधी समर्थक श्री केलप्पन ने महात्मा की आज्ञा से इस प्रथा के विरूद्ध आवाज उठायी और अंततः इसके लिये सन् १९३३ ई0 में सविनय अवज्ञा प्रारम्भ की गयी।
सन् 1918 में यह 30 खंडों में प्रकाशित हुआ और तब से इसमें निरंतर संशोधन परिवर्धन होता आ रहा है।
अई.के.तैम्नी इसकी अनुवाद करते है की,"योग बुद्धि के संशोधनों ( [49]) का निषेध ( [48]) है" ( [50])।
कथानक नवीन नहीं हुआ करते थे- बहुधा पुराने पौराणिक आख्यान या नाटक को ही फिर से गीतिनाट्य का रूप देकर अथवा केवल संशोधन करके ही उपस्थित कर देते थे।
वैब्स्टर के बाद अंग्रेजी कोशों के संशोधन और नए कोशों के प्रकाशन का व्यवसाय तेजी से बढ़ने लगा।
अप्रैल, १९६३ ई. में संविधान का संशोधन हुआ, जिसके अनुसार स्त्रियों को मताधिकार दिया गया और संघीय शासनव्यवस्था के स्थान पर केंद्रीय शासनव्यवस्था लागू की गई।
श्रद्धा से नर और काम का जन्म हुआ ; तुष्टि से सन्तोष और क्रिया का जन्म हुआ ; क्रिया से दण्ड, नय और विनय का जन्म हुआ।
यह प्रतिबंध आज भी लागू है, लेकिन क्रोक पार्क में फुटबॉल और रग्बी खेलने की अनुमति देने के लिए कुछ संशोधन किया गया।
जनगणना 2011 में कुल ग्रामीण परिवारों की संख्या और 2010-11 के बीपीएल संशोधन सर्वेक्षण के आधार पर ग्रामीण इलाकों में बीपीएल परिवारों का प्रतिशत 86.03 प्रतिशत है।
प्रत्येक नवीन संस्करण में विशद संशोधन परिवर्धन किए गए।
1850 के करीब ऑस्ट्रेलिया में एक स्वर्ण दौड़ शुरू हुई और यूरेका कठघरे के विद्रोहीयों द्वारा, 1854 में, लाइसेंस शुल्क के खिलाफ सविनय अवज्ञा इसकी शुरूआती अभिव्यक्ति थी।
सरकार द्वारा उद्योग के परामर्श से इन संशोधनों को तैयार किया जा रहा है और एसटीपीआई के तहत स्टार्ट-अप्स को पंजीकृत करने में मदद मिलेगी, राय ने आईटी उद्योग 2014 में मीडिया एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ पुणे (एसईएपी) और एनएडकॉम द्वारा आयोजित बैठक में कहा।
इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्त्वपूर्ण काव्य है।
१९७२ तक यह नगर असम का भाग था मगर मिज़ोरम के पहले केन्द्र शासित प्रदेश तत्पश्चात 20 फरवरी १९८७ को भारतीय संविधान के ५३वें संशोधन, १९८६ के फलस्वरूप राज्य बनने पर नगर यहाँ की राजधानी बना।
वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।
वालजी देसाई द्वारा किये गये अंग्रेजी अनुवाद का प्रथम संस्करण अपेक्षित संशोधनों के साथ एस० गणेशन मद्रास ने 1928 में और द्वितीय और तृतीय संस्करण नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद ने 1950 और 1961 में प्रकाशित किया था।
हनुमान जी ने साक्षात् प्रकट होकर उन्हें प्रार्थना के पद रचने को कहा, इसके पश्चात् उन्होंने अपनी अन्तिम कृति विनय-पत्रिका लिखी और उसे भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया।
अन्य भारतीय विद्वानों में डॉ॰ नरेन्द्रनाथ ला (स्टडीज इन ऐंशेंट हिंदू पॉलिटी, 1914), श्री प्रमथनाथ बनर्जी (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन ऐंशेंट इंडिया), डॉ॰ काशीप्रसाद जायसवाल (हिंदू पॉलिटी), प्रो॰ विनयकुमार सरकार (दि पाज़िटिव बैकग्राउंड ऑव् हिंदू सोशियोलॉजी), प्रो॰ नारायणचंद्र वंद्योपाध्याय, डॉ॰ प्राणनाथ विद्यालंकार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है।
अन्य भारतीय विद्वानों में डॉ॰ नरेंद्रनाथ ला (स्टडीज इन ऐंशेंट हिंदू पॉलिटी, 1914), श्री प्रेमथनाथ बनर्जी (पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन इन ऐंशेंट इंडिया), डॉ॰ काशीप्रसाद जायसवाल (हिंदू पॉलिटी), प्रो॰ विनयकुमार सरकार (दि पाज़िटिव बैकग्राउंड ऑव् हिंदू सोशियोलॉजी), प्रो॰ नारायणचंद्र वन्द्योपाध्याय, डॉ॰ प्राणनाथ विद्यालंकार आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी रजामन्दी दे दी।
गांधी जी ने भी 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया।
इसके बाद 1914 में जातरा भगत के नेतृत्व में लगभग छब्बीस हजार आदिवासियों ने फिर से ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया था जिससे प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया था।
नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए।
रामललानहछू (1582), वैराग्यसंदीपनी (1612), रामाज्ञाप्रश्न (1612), जानकी-मंगल (1582), रामचरितमानस (1574), सतसई, पार्वती-मंगल (1582), गीतावली (1571), विनय-पत्रिका (1582), कृष्ण-गीतावली (1571), बरवै रामायण (1612), दोहावली (1583) और कवितावली (1612)।