pschent Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
pschent ka kya matlab hota hai
पशेंट
Noun:
सहज-ज्ञान, घ्राण, पता, चिह्न, निशान, अतर, सुगंधि, ख़ुशबू, बू, सुगंध, गंध,
Verb:
संदेह करना, गंध द्वारा किसी का पता लगाना, सुगन्धित करना, सूंघना,
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pschent शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
सहज-ज्ञान और संवेदना में भी स्पष्ट अन्तर है, क्योंकि संवेदनाएँ (Sensation) समुचित बिम्ब अर्थात् रूप (मूर्ति) की सृष्टि नहीं कर पातीं, वह सहज-ज्ञान नहीं समझी जा सकतीं।
सहज-ज्ञान प्रभावों की सक्रिय अभिव्यंजना है, जबकि संवेदना यांत्रिकता है, निष्क्रियता है।
सहज-ज्ञान की सीमा प्रत्यक्ष वस्तुओं तक ही नहीं अपितु दिशा और काल की परिधि से भी आगे तक स्पष्ट है।
हाथी की सूंड में मनुष्य से कई गुणा अधिक घ्राण शक्ति होती है और वह अपनी सूंड ऊपर उठाकर तथा दाहिने बायें समुद्री दूरबीन (पॅरिस्कोप) की तरह लहराकर अपने खाद्य स्रोत, मित्र तथा शत्रु का पता लगा लेता है।
गूगल परियोजना स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली (एएनएस या सहज-ज्ञान तंत्रिका प्रणाली) मुख्य तंत्रिका प्रणाली का एक भाग है जो मूल रूप से चेतना के स्तर के नीचे नियंत्रण तंत्र के रूप में कार्य करती है और सहज प्रकार्यों को नियंत्रित करती है।
सहज-ज्ञान और अभिव्यंजना ।
नासा छत से घ्राण तंत्रिका गंध के ज्ञान को मस्तिष्क में ले जाती है।
क्रोचे के सौंदर्य-दर्शन में केन्द्रीय तत्त्व है सहज-ज्ञान।
सच तो यह है कि बौद्धिक तत्त्व भी सहज-ज्ञान में घुल-मिलकर उसी का रूप ग्रहण कर लेते हैं।
घ्राण, रसना, चक्षु त्वक् और श्रोत्र, इन इंद्रियों को, शरीर के बाहर ऊपरी भाग में रहने के कारण तथा बाहरी विषयों का ग्राहक होने के कारण "बाह्य प्रत्यक्ष प्रमाण" और मन को शरीर के भीतर आत्मा के साथ रहने तथा भीतरी पदार्थ आत्मा एवं आत्मीय गुणों का ग्रहाक होने के कारण "आंतर प्रत्यक्ष प्रमाण" कहा जाता है।
सहज-ज्ञान अभिव्यंजना के बिना या अभिव्यंजना सहज-ज्ञान के बिना सम्भव नहीं है।
सहज-ज्ञान या अन्तःप्रज्ञा और अभिव्यंजना का अभिन्न सम्बन्ध है।
इन्द्रिय स्थान में वर्ण, स्वर, गंध, रस, स्पर्श चक्षु, स्त्रोत, घ्राण, रसना, मन, अग्नि, शौच, शीलता, आचरण, स्मरणशक्ति, विकृति धारणा शक्ति, बल, शरीर आकृति, रूक्षता, स्न्गि्धता, गौरव एवं आहार पाचन तथा आहार परिणाम संबंधी विभिन्न प्रकार के अशुभ लक्षणों का वर्णन सुन्दर वाटीका में सुसज्जित पुष्पों के समान किया गया है।
(५) घ्राणज प्रत्यक्ष, जैसे, फूल सूँघने पर पता लगता है कि वह सुगंधित है।
इंद्रिय रूप प्रत्यक्ष प्रमाण की संख्या छ: होने से तज्जन्य ज्ञानों की संख्या छ: होती है और उन्हें इद्रियद्वारक नामों से व्यवहृत किया जाता है, जैसे- घ्राणज, रासन, चाक्षुष, त्वाच, श्रावण और मानस इन प्रत्यक्ष ज्ञानों में प्रत्येक के दो भेद होते हैं- निर्विकल्पक और सविकल्पक।
न च श्रोतजिव्हे न च घ्राणनेत्रे।
उदाहरणार्थ, जब कोई चित्रकार किसी वस्तु की झलक मात्र देखता है तो हम यह नहीं कह सकते कि उसे सहज-ज्ञान हुआ है।
उन्होंने पूर्ववर्ती इस धारणा का खण्डन किया कि बिना बुद्धि के सहज-ज्ञान सम्भव नहीं।
जो सहज-ज्ञान अभिव्यंजना का रूप धारण नहीं कर सकता वह वास्तव में सच्चा प्रतिभ-ज्ञान नहीं है, वह केवल प्राकृतिक तथ्य और संवेदन बनकर रह जाता है।
(1) बहिरिंद्रिय - घ्राण, रसना, चक्षु, त्वक् तथा श्रोत्र (पाँच) और।
गंगा नदी में पाई जाने वाली गंगा डोल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसकी घ्राण शक्ति अत्यंत तीव्र होती है।
घ्राणेंद्रिय - इसका अंग नासा है।
सहज-ज्ञान (Intuitive)।
संतुलन तथा दिशा बतानेवाले अंग, उपलकोष्ठ (स्टैटोसिस्ट) और घ्राणतंत्रिका भी सिर पर पाई जाती हैं इसकी त्वचा में रंग भरी कोशिकाएँ होती हैं, जिनकी सहायता से यह अपनी परिस्थिति के अनुसार रंग बदलता है।
प्रत्यक्ष-ज्ञान का सम्बन्ध वास्तविक-अवास्तविक तथा देश-काल में रहता है, जबकि सहज-ज्ञान इनका भेद नहीं करता।
क्या निराशावाद आवश्यक रूप से पतन, क्षय, अधोगति, थके हुए व कमज़ोर सहज-ज्ञान का संकेत है।