pangu Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
pangu ka kya matlab hota hai
पंगू
Noun:
पीड़ा, संताप, व्यथा, वेदना,
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pangu शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
दरअसल, हॉब्स इस भौतिकवादी और आनंदवादी विचार के प्रतिपादक थे कि मनुष्य का उद्देश्य अधिकतम आनंद और कम से कम पीड़ा भोगना है।
अग्नि संताप- संज्वर, संताप, दाह, झुलस, जलन।
इस जाने माने संताप मंडलीय ओजोन (stratospheric ozone) रिक्तीकरण के अलावा, क्षोभ मंडलीय ओजोन रिक्तीकरण की घटनाएँ (tropospheric ozone depletion events) भी पाई गई हैं, जो बसंत ऋतु के दौरान ध्रुवीय क्षेत्रों की सतह के पास होता है।
केवल प्राणों का ही वध नहीं, बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा का एक अंग बताया है।
उनके सम्पूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है।
उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।
माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
कमल के पत्तों से बने हुए पंखे तथा मृणाखंड विरहिणी स्त्रियों की संतापशांति के साधन वर्णित किए गए हैं।
देवियों ने कहा: "द्वापरयुग के आरम्भ होने से पूर्व मूर दैत्य के अत्याचारों से व्यथित होकर पृथ्वी अपने गौस्वरुप में देव सभा में उपस्थित होकर बोलीं— “हे देवगण! मैं सभी प्रकार का संताप सहन करने में सक्षम हूँ।
फिर भी वह छोटी बहू के संताप से इतना व्याकुल हो जाता है कि वह उस सिंदूर को छोटी बहू के पास ले जाता है।
गीतगोविन्द में श्रीकृष्ण की गोपिकाओं के साथ रासलीला, राधाविषाद वर्णन, कृष्ण के लिए व्याकुलता, उपालम्भ वचन, कृष्ण की राधा के लिए उत्कंठा, राधा की सखी द्वारा राधा के विरह संताप का वर्णन है।
तुलसीदास जी जब काशी के विख्यात् घाट असीघाट पर रहने लगे तो एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगा।
धर्म और लोककथाओं में, जहन्नुम (नरक) जीवन के बाद का एक ऐसा स्थान है जिसमें बुरी आत्माओं को दंडात्मक पीड़ा के अधीन किया जाता है।
उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा, कृत्रिम और बनावटी है।
उसके जीवन के अंतिम वर्ष दैहिक संताप, मानसिक विषाद, काल्पनिक भय, विक्षोभ तथा उन्माद के आवेग से पूर्ण थे।
भूतनाथ छोटी बहू की ख़ूबसूरती और संताप से मंत्रमुग्ध हो जाता है और न चाहते हुये भी उसके राज़ों का भागीदार हो जाता है।
परिवार में रहती हुई पतिवियुक्ता नारी की पीड़ा को जिस शिद्दत के साथ गुप्तजी अनुभव करते हैं और उसे जो बानगी देते हैं, वह आधुनिक साहित्य में दुर्लभ है।
उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।
प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे मनीषी का मानना है कि जो लोग उन्हें पीड़ा और निराशा की कवयित्री मानते हैं वे यह नहीं जानते कि उस पीड़ा में कितनी आग है जो जीवन के सत्य को उजागर करती है।
नारियों की दुरवस्था तथा दुःखियों दीनों और असहायों की पीड़ा ने उसके हृदय में करुणा के भाव भर दिये थे।
उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा और दुखवाद में विश्व की कल्याण कामना निहित है।
इस विरहिणी नारी के जीवन वृत्त और पीड़ा की अनुभूतियों का विशद वर्णन आख्यानकारों ने नहीं किया है।