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paki Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)


paki ka kya matlab hota hai


पाकी

Noun:

पाकी,



paki शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:

कुल मिलाकर नादिरा ने 63 फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें श्री चार सौ बीस, दिल अपना और प्रीत पराई, पाकीज़ा, जूली और सागर जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

कल्याणपुर ने मियाँ बीबी राज़ी (1960), बात एक रात की (1962), दिल एक मंदिर (1963), दिल ही तो है (1963), शगुन (1964), जहाँआरा (1964), साँझ और सवेरा ( 1964), नूरजहाँ (1967), साथी (1968) और पाकीज़ा (1971)।



कुल मिलाकर नादिरा ने 63 फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें श्री चार सौ बीस, दिल अपना और प्रीत पराई, पाकीज़ा, जूली और सागर जैसी फ़िल्में शामिल हैं।

|1971 || पाकीज़ा || ||।

तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से) अजऱ् की तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है हमे तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला, मसलहक़े का पहचानने वाला है (32)।

मैसूर पाकीज़ा (उर्दु: پاکیزہ، पवित्र) एक सन 1972 की बॉलीवुड फिल्म है।

फ़िल्म पाकीज़ा में राज कुमार का बोला गया एक संवाद “आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें” इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि लोग राज कुमार की आवाज़ की नक़्ल करने लगे।

लेकिन राज कुमार कभी भी किसी ख़ास इमेज में नहीं बंधे इसलिये अपनी इन फ़िल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने 'हमराज़- 1967', 'नीलकमल- 1968', 'मेरे हूजूर- 1968', 'हीर रांझा- 1970' और 'पाकीज़ा- 1971' में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की जो उनके फ़िल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी इसके बावजूद भी राज कुमार यहाँ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।

जलालुद्दीन ने ईरान के धार्मिक पाकीर सीदी मौला को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था।

यह फिल्म पाकीज़ा (पवित्र) नरगिस (मीना कुमारी) के बारे में है जो कोठे पर पलती है।

इस्लाम में तहारत (पाकी - सफाई) बहुत महत्व है।

|1971 || पाकीज़ा || ||।

खय्याम ने आगे कहा, "लोग 'पाकीज़ा' में सब कुछ देख सुन चुके थे. ऐसे में उमराव जान के संगीत को खास बनाने के लिए मैंने इतिहास पढ़ना शुरू किया."।

उनकी अंतिम छह फिल्में- जबाव, सात फेरे, मेरे अपने, दुश्मन, पाकीज़ा और गोमती के किनारे में से केवल पाकीज़ा में उनकी मुख्य भूमिका थी।

दोनों कथानक जालपाकी मध्यस्थता द्वारा जोड़ दिए गये हैं।

लेकिन अभी साधारण तया दक्षीण एसिया कहने से भुटान, बंगलादेस, भारत, नेपाल, श्रीलंका, मालदीप, पाकीस्तान और अफगानीस्तान को काहाजाता है ए मुल्क दक्षीण एसियाइ सहयोग संगठन (सार्क) में आबद्ध है, बर्मा दक्षिण पुर्वी एसीयाली संगठन आसीयान में आबद्ध और इरान भि अभी तक सार्क में आबद्ध नहीं है।

लेकिन अभी साधारण तया दक्षीण एसिया कहने से भुटान, बंगलादेस, भारत, नेपाल, श्रीलंका, मालदीप, पाकीस्तान और अफगानीस्तान को काहाजाता है ए मुल्क दक्षीण एसियाइ सहयोग संगठन (सार्क) में आबद्ध है, बर्मा दक्षिण पुर्वी एसीयाली संगठन आसीयान में आबद्ध और इरान भि अभी तक सार्क में आबद्ध नहीं है।

तब सलीम उसका नाम पाकीज़ा रख देता है और कानूनी तौर पर निका़ह करने के लिये एक मौलवी के पास जाता है।

फ़िल्म पाकीज़ा में राज कुमार का बोला गया एक संवाद “आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें” इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि लोग राज कुमार की आवाज़ की नक़्ल करने लगे।

कल्याणपुर ने मियाँ बीबी राज़ी (1960), बात एक रात की (1962), दिल एक मंदिर (1963), दिल ही तो है (1963), शगुन (1964), जहाँआरा (1964), साँझ और सवेरा ( 1964), नूरजहाँ (1967), साथी (1968) और पाकीज़ा (1971)।

खय्याम ने बताया कि 'पाकीज़ा' की जबर्दस्त कामयाबी के बाद 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय उन्हें बहुत डर लग रहा था.।

उन्हें कई प्रकार के दुर्लभ रागों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाना जाता है जिनमें अबिरी टोडी और पाटदीपाकी शामिल हैं।

उनकी अंतिम छह फिल्में- जबाव, सात फेरे, मेरे अपने, दुश्मन, पाकीज़ा और गोमती के किनारे में से केवल पाकीज़ा में उनकी मुख्य भूमिका थी।

उन्होंने कहा, "पाकीज़ा और उमराव जान की पृष्ठभूमि एक जैसी थी. 'पाकीज़ा' कमाल अमरोही साहब ने बनाई थी जिसमें मीना कुमारी, अशोक कुमार, राज कुमार थे. इसका संगीत गुलाम मोहम्मद ने दिया था और यह बड़ी हिट फ़िल्म थी. ऐसे में 'उमराव जान' का संगीत बनाते समय मैं बहुत डरा हुआ था और वो मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी."।

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