hoarsen Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
hoarsen ka kya matlab hota hai
होरसेन
Adjective:
बेसुरा, रूक्ष, कर्कश,
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hoarsen शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं।
|स्निग्ध (चिकना) || रूक्ष (खुरदुरा)।
स्कूलों में एक मिल्कशेक मशीन या नरम आइसक्रीम बनाने वाले मशीनों की आवश्यकता होगी ताकि मिल्कशेक दिया जा सके. इस मिल्कशेक में अतिरिक्त रूक्षांस और अन्य पोषक तत्व भी शामिल है और उसमें बहुत कम लैक्टोज पाया जाता है, जिसके कारण यह कम लैक्टोज सहन करनेवाले लोगों के लिए भी उपयुक्त है।
गूलर शीतल, गर्भसंधानकारक, व्रणरोपक, रूक्ष, कसैला, भारी, मधुर, अस्थिसंधान कारक एवं वर्ण को उज्ज्वल करने वाला है कफपित्त, अतिसार तथा योनि रोग को नष्ट करने वाला है।
गाँववालों से विवाद के चलते दोनों परेशान होकर जंगल चले जाते हैं और वहीं पर अपना बेसुरा अभ्यास शुरु कर देते हैं।
और तो और, भूतों का राजा इनका बेसुरा गायन सुनकर अति प्रसन्न होता है और इन्हें कई शक्तियाँ और वरदान देता है।
चेन और सहकर्मियों के प्रतिमान विकल्प है आलोचना मुक्त है और सुझाव दिया कि, पसंद, रैंक "विधि का अध्ययन बेसुरापन रैंक" अवैध है।
उपर्युक्त संवाद के आधार पर बोधिधर्म एक रूक्ष स्वभाव के व्यक्ति सिद्ध होते हैं।
गुपी एक बेसुरा गायक है और बाघा एक बेसुरा वादक है।
जाड़ों की ऋतु में हिमालयी क्षेत्र की रूक्ष मौसमी दशाओं के कारण मन्दिर वर्ष के छह महीनों (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) की सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है।
कमाया हुआ चमड़ा सदा रूक्ष होता है, इसलिये उसे समयागत कण आकारों से संबद्ध विभिन्न सतही फिनिश देते हैं, जिनके लिये निम्नलिखित प्रक्रम हैं :।
निचली सतह में सूक्ष्मकणिक मिट्टी (fine grained soils), जैसे सिल्ट मिट्टी होने पर रूक्ष समुच्चय (coarse aggregate) अर्थात् पत्थर रोड़ी रखने के पूर्व उसपर आवरण (screenings) की एक परत रखी जाती है, जिसे बिचली सतह (sub base) कहते हैं।
1980 के दशक के दौरान, कूपर और फेजियो कि बेसुरापन तर्क था अवेर्सिव परिणाम है, बजाय विसंगति के कारण होता. इस व्याख्या के अनुसार करने के लिए, यह तथ्य है कि झूठ बोल रही है गलत और हानिकारक, बीच कोगनिशंस विसंगति क्या नहीं है बनाता है लोगों को बुरा लगता है।
वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए।
इन्द्रिय स्थान में वर्ण, स्वर, गंध, रस, स्पर्श चक्षु, स्त्रोत, घ्राण, रसना, मन, अग्नि, शौच, शीलता, आचरण, स्मरणशक्ति, विकृति धारणा शक्ति, बल, शरीर आकृति, रूक्षता, स्न्गि्धता, गौरव एवं आहार पाचन तथा आहार परिणाम संबंधी विभिन्न प्रकार के अशुभ लक्षणों का वर्णन सुन्दर वाटीका में सुसज्जित पुष्पों के समान किया गया है।