heaveho Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
heaveho ka kya matlab hota hai
उतावले हो
Noun:
अत्यंत आनंद, देवलोक, स्वर्गलोक, व्योम, गगन, आकाश, स्वर्ग,
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heaveho शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
'सूरज की गर्मी से तपते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया' ...... कभी किसी समय फ़िल्म- परिणय (1974) के इस भजन के माध्यम से गायक शर्मा बंधुओं ने हिन्दुस्तानी संगीत प्रेमियों को अत्यंत आनंदित और आह्लादित किया था।
तत्पश्चात व्यास जी ने साठ लाख श्लोकों की एक दूसरी संहिता बनायी, जिसके तीस लाख श्लोक देवलोक में, पन्द्रह लाख पितृलोक में तथा चौदह लाख श्लोक गन्धर्वलोक में समादृत हुए।
वैसे तो देवलोक के पेड़ कल्पतरु (पारिजात) को सभी तीर्थ स्थलों पर रोपित किया जा रहा है, परन्तु धरती पर कल्पवृक्ष वन के रूप में एकमात्र यही वन विकसित है, जहाँ दुनिया भर के श्रद्धालु कल्पवृक्ष के दर्शन करके अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
छत्रसाल अत्यंत आनंदित हुए।
वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन है- देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ऋषिगण देवर्षि नाम से जाने जाते हैं।
महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति ॥।
देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे।
भावार्थ -- श्री कृष्ण प्रिया के ध्यान से ह्रदय रुपी आकाश शुद्ध करने वाले, चरण नख चन्द्र प्रकाश करने वाले, प्रिया-प्रियतम की अत्यंत आनंद कुंज में भावयुक्त हित सजनी (हित अली), श्री व्यास वंश के दीपक श्री हरिवंश चन्द्र की जय हो॥ ६॥।
एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिए एक अश्ववमेध नामक यज्ञ किया।
इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।
गार्गी- देवलोक किसमें ओतप्रोत है?।
उन्होंने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान मांगा- देवता देवलोक में रहें, भूलोक (पृथ्वी) मनुष्यों के लिए रहे।
याज्ञवल्क्य- देवलोक में ओतप्रोत है।
तत्पश्चात व्यास जी ने साठ लाख श्लोकों की एक दूसरी संहिता बनायी, जिसके तीस लाख श्लोकों देवलोक में, पंद्रह लाख पितृलोक में तथा चौदह लाख श्लोक गन्धर्वलोक में समादृत हुए।
उनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।
जीवित रहते हुए उसे अत्यंत आनंद का अनुभव भी नहीं होता था और मरते हुए वह कोई प्रतिरोध नहीं करता था।
अत: आज तक किसी को भी इन वैदिक या वर्णाश्रम-व्यवस्था से सम्बद्ध कर्मों का फल-स्वर्ग, मोक्ष, देवलोक गमन आदि प्रत्यक्ष अनुभूति नहीं है अत: ये समस्त वैदिक कर्म निष्फल ही हैं, यह स्वत: युक्ति पूर्वक सिद्ध हो जाता है।