flinger Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
flinger ka kya matlab hota hai
फ्लिंगर
Noun:
अंगुली, उंगली,
Verb:
चुराना, घुस खाना, उंगली लगा देना, उंगली लगाना,
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flinger शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था।
यह लकड़ी या बेंत का बना होता है जिसमें सामान्यतः सात अंगुली छिद्र एवं एक अंगूठा छिद्र होता है जो द्वि स्वर उत्पन्न करता है।
गीत की अंतिम अंगुली जिसकी हथेली पर समाप्त होती है वह अपनी हथेली सीधी कर लेता है।
बांसुरी में गोलाकार ध्वनि छिद्र होते हैं जोकि इसके बारोक पूर्वजों के अंगुली छिद्र से बड़े होते हैं।
इसका मतलब है "हाउ इस देट?" यदि अंपायर अपील से सहमत हैं, तो वह तर्जनी अंगुली उठा कर कहता है "आउट!"अन्यथा वह सिर हिला कर कहता है "नॉट आउट".अपील उस समय तेज आवाज में की जाती है जब आउट होने की परिस्थिति स्पष्ट न हो।
ता/ना - किनारा पर तर्जनी (पहली) उउंगली से, ठोकर के बाद उंगली तुरंत उठ जाती है।
वर्तमान में कर्नाटक संगीत बांसुरी वादकों द्वारा सामान्यतः आरपार अंगुली तकनीक से चलने वाले आठ छिद्रों वाले बांसुरी का प्रयोग किया जाता है।
बीच की उंगली को मालिश करना।
इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखे चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है।
उदाहरण के लिए, अंपायर एक तर्जनी अंगुली उठा कर बताता है कि बल्लेबाज आउट हो गया है; और यदि बल्लेबाज ने छ: रन बनाए हैं तो वो दोनों हाथों को ऊपर उठाता है।
ती - मैदान में तर्जनी से ठोकर, उंगली तुरंत उठ जाती है।
दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वरम के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बाहिने हाथ की छोटी अंगुली सदा के लिए मुड़ गई।
धा/धे - पहिली (या दूसरी) उंगली से बीच में ठोकर, मणिबंध (कलाई का पिछला हिस्सा) "मैदान" में रखा रहता है।
तिन् - सियाही पर तर्जनी से ठोकर, उंगली तुरंत उठ जाती है।
नूमेनोरियों का युवराज इसील्दूर एलेन्दिल (Isildur Elendil) अपने मृत पिता की टूटी हुई तल्वार नार्सिल से सौरॉन की उंगली काटकर उससे वो एक अंगूठी छीन लेता है और सौरॉन का जिस्मानी वजूद ख़त्म कर देता है।
कुछ परिष्कारों के साथ (किंगमा प्रणाली एवं अन्य परंपरागत रूप से स्वीकृत अंगुली प्रणालियों को विरल अपवाद स्वरूप छोड़कर) वैस्टर्न कंसर्ट बांसुरी मूलतः बोहम की डिजाइन तक ही सीमित रहे एवं बोहम प्रणाली के नाम से जाने जाते है।
माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें।
ध्वनि छिद्र का आकार एवं स्थिति, प्रमुख कार्यप्रणाली, एवं बांसुरी के विस्तार में नोट्स को उत्पन्न करने के लिये अंगुली के प्रयोग का विकास 1832 से 1847 के मध्य थिओबाल्ड बोहम ने किया था एवं यंत्र के गतिज विस्तार एवं तान (ध्वनि का उतार चढ़ाव) में उनके उत्तराधिकारियों ने महान सुधार किया।
लेकिन उसी वक़्त गोल्लुम गुफा में पहुँचता है और अंगूठी छीनने के लिये फ़्रोडो की पूरी उंगली ही दाँत से काट लेता है।
दूसरी, वेणु या पुलनगुझाल है, जिसमें आठ अंगुली छिद्र होते हैं एवं जिसका प्रयोग मुख्य रूप से दक्षिण भारत में कर्नाटक संगीत में किया जाता है।
अगर कोई भी उस अंगूठी को अपनी उंगली में पहने, तो वो दुनिया की नज़र से ग़ायब हो जाता था (तब तक के लिये, जब तक उसने अंगूठी पहनी हुई हो)।
तब इसका विकास बी एन सुरेश एवं डॉ॰ एन. रमानी ने किया. इसके पहले, दक्षिण भारतीय बांसुरी में केवल सात अंगुली छिद्र होते थे जिसके अंगुली मानदंडों का विकास 20वीं शताब्दी के आरंभ में पल्लादम स्कूल के शराबा शास्त्री द्वारा किया गया था।