droukings Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
droukings ka kya matlab hota hai
ड्रॉकिंग्स
Noun:
लीद, गोबर,
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droukings शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
चिकित्सा, तत्वज्ञान, पहाड़ों की चढ़ाई के संबंध में जर्मनी से, कला के संबंध में फ्रांसीसी से, संगीत के संबंध में इतालीद से अधिक शब्द लिए गए हैं।
निर्माण सामग्री के रूप में जिस समय पत्थर का इस्तेमाल अधिक सुविधाजनक और विश्वसनीय था, इस समय भी गुजरात के लोगों ने मंदिरों के मंडप तथा आवासीय भवनों के अग्रभागों, द्वारों, स्तंभों, झरोखों, दीवारगीरों और जालीदार खिड़कियों के निर्माण में निर्माण में बेझिझक लकड़ी का प्रयोग जारी रखा।
या सात बार घुमाकर बैलों को हार जुआईट के साथ घर लाकर आंगन में दोनों बैलों के पैरों को धोकर उनके पैरों पर तेल मखाया जाता है उसके बाद हार जोतने गये कृषक गोबरडिंग(बहूत सारा गोबर रखने की जगह) में गोबर काटकर कृर्षि काम की शुरूआत करता है।
भूमि में आवश्यकता से अधिक रसायनों का प्रयोग करना तथा कभी भी जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद, सड़ी गोबर की खाद तथा ढ़ैचा की हरी खाद का प्रयोग न करना।
यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में दोषी कालीदास आर्ट ऐंड साइंस कॉलेज, गवर्नमेंट डेंटल कॉलेज, एम. पी. शाह मेडिकल कॉलेज, एम. पी. कॉमर्स कॉलेज और वी. एम. मेहता कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स ऐंड आर्ट्स शामिल हैं।
मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है।
मधुबनी भित्ति चित्र में मिट्टी (चिकनी) व गाय के गोबर के मिश्रण में बबूल की गोंद मिलाकर दीवारों पर लिपाई की जाती है।
यह जिला महाकवि कालीदास, मैथिली कवि विद्यापति तथा वाचस्पति जैसे विद्वानों की जन्मभूमि रही है।
इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं।
प्रेसमड, ऊसर तोड़ खाद, शीरा, धान का पुआव धान की भूसी, बालू जलकुम्भी, कच्चा गोबर और पुआंल गोबर और कम्पोस्ट की खाद, वर्गी कम्पोस्ट, सत्यानाशी खरपतवारी, आदि।
चित्रण से पूर्व हस्त नर्मित कागज को तैयार करने के लिऐ कागज पर गाय के गोबर का घोल बनाकर तथा इसमें बबूल का गोंद डाला जाता है।
तांबूल के अतिरिक्त नागवल्ली, नागवल्लीदल, तांबूली, पर्ण (जिससे हिंदी का पान शब्द निकला है), नागरबेल (गुजराती) आदि इसके नाम हैं।
1988 में कालीदास सम्मान।
पास ही एक कंकाली टीले पर कंकालीदेवी का मंदिर है।
जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है।
शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है।
गाय के गोबर में एक खास तरह का रसायन पदार्थ होने के कारण दीवार पर विशेष चमक आ जाती है।
भारतीय साहित्य की अनुपम कृति कालीदास द्वारा रचित “मेघदूतम” की रचना भी इसी स्थान पर हुई है।
सूती कपड़े से गोबर के घोल को कागज पर लगाया जाता है और धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है।
यहां जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं।
20वीं शताब्दी में विश्वकवि रवींद्र ने "भानुसिंहेर पदावली" के नाम से कई सुंदर ब्रजबुलीद पद लिखे।
जीवद्रव्यों के कई प्रकार होते हैं, जैसे कोलाइड (colloid), कणाभ (granular), तंतुमय (fibrillar), जालीदार (reticular), कूपिकाकार (alveolar), आदि।