corbe Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
corbe ka kya matlab hota hai
कौवे
Noun:
सत्व, मर्म, गूदा,
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corbe शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
मध्यप्रदेश लोक-संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान श्री वसन्त निरगुणे लिखते हैं- "संस्कृति किसी एक अकेले का दाय नहीं होती, उसमें पूरे समूह का सक्रिय सामूहिक दायित्व होता है।
बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था।
उनका करूण विप्रलम्भ तीनों पात्रों में सर्वाधिक मर्मस्पर्शी बन पड़ा है।
शारीरिक बाल और सामर्थ्य की अभिव्यंजक प्राचीन काल की ये यक्ष प्रतिमाएँ केवल लोक कला के उदाहरण ही नहीं अपितु उत्तर काल में निर्मित बोधिसत्व, विष्णु, कुबेर, नाग आदि देव प्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरिकाएँ भी हैं।
इस प्रकार के कार्य का ऐतिहासिक मर्म, नारीवाद सिद्धांत और पितृसत्ता के मामले से जुड़ा है: जो अधिकांश समाजों में यथाक्रम महिलाओं के दमन को स्पष्ट करता है।
आन्तरिक सत्व(कोर) की त्रिज्या, पृथ्वी की त्रिज्या की लगभग पाँचवाँ हिस्सा है।
वहाँ फव्वारों का जल प्रपात, मर्मर पक्षी और आकर्षक फूलों की बहुतायत देखते ही बनती थी।
वाक्यखंड में संज्ञा का एक विशेष स्थान होता है और विभक्तियों की आज जैसी अनिवार्यता उस समय थी भी नहीं, क्योंकि यह एक महान वास्तविक कल्पना थी जो यहूदियों की अपनी थी तथा शब्दों के प्रति उनका संवेदन मर्मस्पर्शी था।
रासायनिक संरचना के आधार पर इसे भूपर्पटी, ऊपरी आवरण, निचला आवरण, बाहरी सत्व(कोर) और आन्तरिक सत्व(कोर) में बाँटा गया है।
उपनिषद् में ऋषि और शिष्य के बीच बहुत सुन्दर और गूढ संवाद है जो पाठक को वेद के मर्म तक पहुंचाता है।
साहित्य का मर्म (1949)।
चित्र:MathuraBodhisattvaSide.jpg|बोधिसत्व पार्श्व दूसरी शताब्दी।
६५वा अध्याय : देवीसत्वन वर्णनम, कलेश्वरी वर्णनम।
अक्तिजातक में बोधिसत्व के १६ वर्ष की आयु में वहाँ जाकर विद्या ग्रहण करने का उल्लेख है।
४ यहाँ से इस काल की कई कलाकृतियाँ भी प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें बोधिसत्व की विशाल प्रतिमा (लखनऊ संग्रहालय बी.१ बी) अमोहिनी का शिलाप (लखनऊ संग्रहालय, जे.-१), कई वेदिका स्तम्भ जिनमें से कुछ पर जातक कथाएँ तथा यक्षिणयों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं, प्रमुख हैं।
कविता और जीवन का मर्म ।
पालि निकायों से विदित होता है कि कालाम ने बोधिसत्व को 'आर्किचन्यायतन' नाम की 'अल्प समापत्ति' सिखाई।
चित्र:MathuraBuddha.JPG|बोधिसत्व सिद्धार्थ गौतम, दूसरी शताब्दी।
ऐसी ही बात दार्शनिक सिद्धांतों और धार्मिक भाव मर्मों के भी प्रस्तुत करने में आती है क्योंकि उनमें अपनी विरसता स्वभावत: रहती है।
यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी, स्थलमण्डल, दुर्बलता मण्डल, मध्यवर्ती आवरण, बाह्य सत्व(कोर) और आन्तरिक सत्व(कोर) से बना हुआ हैं।
एक महादेवी ही हैं जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्य कवीतां निकषं वदंति’ उक्ति को चरितार्थ किया है।
पृथ्वी की ऊपरी परत भूपर्पटी एक ठोस परत है, मध्यवर्ती आवरण अत्यधिक गाढ़ी परत है और बाह्य सत्व(कोर) तरल तथा आन्तरिक सत्व(कोर) ठोस अवस्था में है।
अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म के मर्म समझाये।
लालजी ब्रजभाषा के मर्मज्ञ थे।
चित्र:MathuraMaitreya.JPG|बोधिसत्व मैत्रेय, मथुरा कला, दूसरी शताब्दी।