cancrine Meaning in Hindi (शब्द के हिंदी अर्थ)
cancrine ka kya matlab hota hai
कैंक्रीन
Noun:
खांग, दांत, कुचली,
Adjective:
कुत्ते का,
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cancrine शब्द के हिंदी अर्थ का उदाहरण:
2. अर्खांगेल्स्क (Архангельск)।
अश्व मक्खी (हॉर्स फ्लाई) और अस्तबल मक्खियों (स्टेबल फ्लाई) का मुखांग बहुत ही तीक्ष्ण होता है।
२- नीम की दातुन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं।
5. जिनमें शाखांगों के दो जोड़े पंखों (फ़िन, क़त्द) या हाथ-पैर के रूप में होते हैं।
सरसों में माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के 1.5-3.0 मिमी. लम्बे चुभने एवम चूसने मुखांग वाले छोटे कीट होते है।
कई खिलाड़ियों मुँह गार्ड पहनने के प्रभावों से गेंद या छड़ी से दांतों और मसूड़ों की रक्षा करना. कुछ स्थानीय नियमों को उनके उपयोग की आवश्यकता है।
इस प्रकार, इन भाषाओं को बनाने पर विद्यापति के प्रभाव को "इटली में दांते और इंग्लैंड में चासर के समान” माना जाता है।
दांते अलीमिएरी (1265-1321) ने इसी नवीन शैली में, तोस्काना की बोली में, अपनी महान कृति "दिवीना कोमेदिया" लिखी।
लगभग 1900 से वहाँ पर लियोपोल्ड II के अधीन कोंगोलीज़ जनता के साथ उग्र और वहशी व्यवहार के प्रति अंतर्राष्ट्रीय चिन्ता बढ़ती जा रही थी, जिसके लिए कांगो मुख्य रूप से हाथी दांत और रबर उत्पादन से राजस्व का स्रोत था।
अग्रशाखांग डैनों में परिवर्तित होते हैं।
दांते ने "कोन्वीविओ" में गद्य का भी परिष्कृत रूप प्रस्तुत किया और गूइदो फाबा तथा गूइत्तोने द आरेज्जो की कृत्रिम तथा साधारण बोलचाल की भाषा से भिन्न स्वाभाविक गद्य का रूप उपस्थित किया।
"वराह" का अर्थ (जंगली) सूअर होता है और "मूल" का अर्थ उसका पैना दांत है।
दांते तथा "दोचे स्तील नोवो" के अन्य अनुयायियों में अग्रगण्य हैं फ्रोंचेस्को, पेत्रार्का और ज्वोवान्नी बोक्काच्यो।
इसमें पाँच जोड़े पैर एवं पाँच जोड़ं शाखांग होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे।
पूर्ण रूपांतरित तथा हन्विकायुक्त मुखांग वाले कीटों में मुख्यत: छेद करने की आदत होती है।
इस जिले का मुख्यालय ऊवूखांगाई है।
२३ वर्ष की अवस्था में वर्ष १९५९ के वार्षिक मोनलम ;प्रार्थनाद्ध उत्सव के दौरान उन्होंने जोखांग मंदिर, ल्हासा में अपनी फाइनल परीक्षा दी।
मुख के चारों ओर मुखांग (Mouthparents) होते हैं, जो जंतु के आवश्यकता अनुसार छेदने, चूसने या चबाने के लिए अनुकूलित (Adapted) होते हैं।
पीछे के लेखकों ने दांते, पेत्रार्का और बोक्काच्यो की कृतियों से सदियों तक प्रेरणा ग्रहण की।
शाखांग कभी पख के रूप में नहीं होते।
प्रायः सभी खंडों के पार्श्व की ओर एक संधियुक्त शाखांग होते हैं।
शाखांग जब वर्तमान होते हैं तो उनकी रचना पंचांगुलिक होती है जो चलने फिरने तथा तैरने के लिए होते हैं तथा उनमें किसी प्रकार के नाखून नहीं होते।
इन वस्तुओं में कीमती रत्नों, हाथी दांत व मोतियों से बना हार, लकड़ी और भैंस के सींगों से बने वाद्ययंत्र तथा अन्य वस्तुएं प्रमुख हैं।