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दुःख,शोक Meaning in English



दुःख,शोक शब्द का अंग्रेजी अर्थ : grief mourning


दुःख,शोक हिंदी उपयोग और उदाहरण

"" शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े।


इस दिट्ठी के आठ चरम थे- ‘1. चरम पान 2. चरम गीत 3. चरम नृत्य 4. चरम अंजलि (अंजली चम्म-हाथ जोड़कर अभिवादन करना) 5. चरम पुष्कल-संवर्त्त महामेघ 6. चरम संचनक गंधहस्ती 7. चरम महाशिला कंटक महासंग्राम 8. मैं इस महासर्पिणी काल के 24 तीर्थंकरों में चरम तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध होऊंगा यानी सब दुःखों का अंत करूंगा।


उरजन डर बिछुरे दुःख मानत ,पल पिंजरा न समात।


""दुःखार्तानां श्रमार्तानां शोकार्तानां तपस्विनाम्।


""‘मां बाजार में यही अनुवाद मिले.’ विन्या ने समस्या बताई. ऐसे बोझिल और उबाऊ अनुवाद अपनी अल्पशिक्षित मां के हाथ में थमाते हुए वे स्वयं दुःखी थे।


""भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।


पुनः ईश्वर की सत्ता किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं हो सकती. या तो ईश्वर स्वतन्त्र और सर्वशक्तिमान् नहीं है, या फिर वह उदार और दयालु नहीं है, अन्यथा दुःख, शोक, वैषम्यादि से युक्त इस जगत् को क्यों उत्पन्न करता? यदि ईश्वर कर्म-सिद्धान्त से नियन्त्रित है, तो स्वतन्त्र नहीं है और कर्मसिद्धान्त को न मानने पर सृष्टिवैचित्र्य सिद्ध नहीं हो सकता।


संसार में दुःख भी है, यह समझकर जो सुख नहीं भोगना चाहते, वे मूर्ख हैं।


उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया।


उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि 13.0 प्रतिशत अनपराधी सहोदारों की तुलना मे 90.0 प्रतिशत अपराधी किशारों का घरेलू जीवन दुःख भरा था और वेअपने जीवन की परिस्थितियों से असन्तुष्ट थे, उनकी अप्रसन्नता की प्रकृति भिन्न थी।


पार्वती जी प्रेमवश व्याकुल हो गईं, उनके शरीर की सुध-बुध जाती रही, मानो वन में बढ़ती हुई कल्पता को विषम पाले ने मार दिया हो. फिर सखियों ने घर-घर जाकर सारे समाचार सुनाए और इस समाचार को सुनकर माता-पिता एवं घर के लोग दारुण दुःख में जलने लगे.।


इस 'समग्र वाङ्मय' के संकलन एवं प्रकाशन कार्य से आरंभ से ही सुगत बोस भी जुड़े हुए थे और अंतिम दो खंडों का प्रकाशन डॉ० शिशिर कुमार बोस के दुःखद निधन के कारण मुख्यतः सुगत बोस के ही संपादन में हुआ।


शिव ने दुःख और क्रोध में वहाँ पहुँचकर यज्ञभंग कर दिया और सती के शव को लेकर दुःखमें डूबे इधर-उधर घूमते फिर रहे थे जिससे उबारने के लिये विष्णु ने सती के शव को अपने चक्र से टुकड़ों में काट कर छितरा दिया।





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