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चमार Meaning in English



चमार शब्द का अंग्रेजी अर्थ : a scheduled class amongst the Hindus traditionally living by tanning leather and shoemaking


चमार हिंदी उपयोग और उदाहरण

हिंदी हार्टलैंड के चमारों, जिनमें से कई चमड़ा उद्योग में काम करते हैं, एक सदी से अधिक समय से यहां हैं।


इसके अलावा यहां पंचमार्क सिक्के, अकबर के समय के दिन-ए-इलाही सिक्के, बुद्धा के समय के स्वर्ण सिक्के, एक तार से बनी साइकिल, खास घड़ी, पीपल के पत्ते पर गोल्ड से पेटिंग, मुगल पेटिंग, याक्षिणी की मूर्ति समेत कई अन्य बहुमूल्य वस्तुएं लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाली हैं।


हरित जी का मानस दलितों के प्रति बूम की आपत्तिजनक टिप्पणियों साहब और आंदोलित हुआ और उन्होंने चमार नामा लिखकर बूंम का सटीक जवाब दिया।


चतुरी चमार (१९४५) ['सखी' संग्रह की कहानियों का ही इस नये नाम से पुनर्प्रकाशन।


दलितों के लिए उन्होने रात्रिकालीन विद्यालय चलाए और 'चमार सभा' की स्थापना की।


"" शक्तिपीठों में चाण्डाल और भंगी, चमार, देवपाल और पुजारी के रूप में प्रसिद्ध शक्ति पीठ गुह्येश्वरी देवी, शोभा भागवती के चाण्डाल तथा भंगी, चमार पुजारियों को प्रस्तुत किया जा सकता है।


सन 1940 में हापुर उत्तर प्रदेश निवासी चर्चित शायर जिनका उपनाम 'बूंम' था उसने चमारी नामा नामक एक लघु पुस्तिका लिखी जिसमें दलित स्त्रियों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी।


इन फंडों से बेंचमार्क इंडेक्स के समान ही रिटर्न मिलने की आशा होती है व इनके जोखिम भी उन सिक्योरिटीज के जोखिम के साथ ही जुड़े होते हैं जिनमें ये निवेश करते हैं।


रेड - यह जगह टोंक में निवाई के पास ढील नदी स्थित है, इसे 'प्राचीन भारत का टाटानगर' के नाम से जाना जाता है, यहां पे से आज तक का एशिया का सबसे बड़ा पंचमार्क सिक्को का भंडार मिला।


प्रमुख रूप से भुइयार (हिन्दु जुलाहा), ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गूजर, अहीर, त्यागी, रवा राजपूत, बनिया (वैश्य), चमार, कायस्थ, खत्री आदि उपजातियाँ हैं।


ग्राम्य लुहार, चमार व गाडूलिया- लुहार (एक घुमक्कड़ व्यवसायी जाति) कृषि के लिए लौह- उपकरणों, जैसे हल, कुदाल, नीराई- गुड़ाई करने की खाप, चड़स आदि तथा घरेलू- सामानों (चिमटा, दंतुली, सांकल, चाकू आदि) बनाने का कार्य करती थी।


मातृगुप्त और प्रवरसेन, नरेन्द्रप्रभा और प्रतापादित्य तथा अनंगलेखा, खंख और दुर्लभवर्धन (तरंग 3) अथवा चंद्रापीड और चमार (तरंग 4) के प्रसंगों में मानव मनोविज्ञान के मनोरम चित्र झिलमिलाते हैं।


प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि-'प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था।





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